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सागर तट जाकर
बैठता हूँ कभी मैं
चिंताएँ अपनी
भूलता हूँ सभी मैं
निर्जन टापू पर
सुनकर लहरों को
हरदम होता हूँ
आनंदित और भी मैं
रुककर सुनता हूँ
प्रकृती का इशारा
आगे बढने का
बढता है बल मेरा
छोडता हूँ वही पर
कष्ट सारे जहाँ के
लेकर आता हूँ
महका सा एक चेहरा
तुषार जोशी, नागपुर
(छायाचित्र सौजन्य कृपाली)
तुषार जी,
जवाब देंहटाएंआपकी कवितायें तो गंभीर होती ही हैं किंतु आपके फोटोग्राफ्स का कोई जवाब नहीं। आपको कोटिश: बधाई..
*** राजीव रंजन प्रसाद
काश ऐसा सागर तट आसानि से सभि को मिले जहा
जवाब देंहटाएंहम अपने सारे गम छोड कर आ सके.
खरच खुप छान आहे........................
सुन्दर! बहुत सुन्दर, एकांत का भी जीवन में बहुत महत्व है, सचमुच!
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