(छायाचित्र सहयोग: निशिधा )
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आज तुम यूँ साड़ी पहन कर सामने आ गई
मैं घटा मानता था तुम तो बिजली गिरा गई
सोचा था आज रूठा रहूँगा मानुंगा ना मै
तुम्हारी मुस्कराहट सारी शिकायत भुला गई
कितने देखे फूल जहाँ में दिल नहीं माना था
तुम्हारी एक अदा मुझे बस दिवाना बना गई
खुले बाल थे और पहना था सादगी का गहना
तुम्हारी छबी दिल-ओ-जाँ को पूरा हिला गई
यूँ अचानक खिल के आईं नसगिस जैसे तुम
मर गया मैं मरने में भी लज्जत दिला गई
तुषार जोशी, नागपूर
मैं घटा मानता था तुम तो बिजली गिरा गई
सोचा था आज रूठा रहूँगा मानुंगा ना मै
तुम्हारी मुस्कराहट सारी शिकायत भुला गई
कितने देखे फूल जहाँ में दिल नहीं माना था
तुम्हारी एक अदा मुझे बस दिवाना बना गई
खुले बाल थे और पहना था सादगी का गहना
तुम्हारी छबी दिल-ओ-जाँ को पूरा हिला गई
यूँ अचानक खिल के आईं नसगिस जैसे तुम
मर गया मैं मरने में भी लज्जत दिला गई
तुषार जोशी, नागपूर
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बहुत उम्दा लिखा हैं तुषार जी ...
जवाब देंहटाएंशुक्रिया ! @baramdekidhoop
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