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कितनी खुश हूँ
पुछो मेरे
रेशमी बालों से
चेहरे पर बनते
धूप और
छाँव के जालों से
आईना भी
मुसकाता है
देखके अब मुझको
कितनी खुश हो
कहता पगली
हुआ क्या है तुझको
दिल करता है
चिख चिख कर
सबको बतलाऊँ
सब सुना दूँ
आज अभी मैं
कुछ ना छुपाऊँ
आज मिली है
मुझको अपनी
अलग एक पहचान
मेरे ही इस
नये रूप से
अब तक थी अनजान
तुषार जोशी, नागपुर
ईस चिठ्ठे पर लिखी कविताएँ तुषार जोशी, नागपूर ने साथ मेँ लगी तस्वीर को देखकर पहले दस मिनट में लिखीँ है। मगर फिर भी लेखक के संदर्भ, पूर्वानुभव और कल्पनाएँ उनमे उतर ही आती है। छायाचित्र सहयोग के लिये सभी छायाचित्र प्रदानकर्ताओं का दिल से धन्यवाद।
शनिवार, 5 मई 2007
कितनी खुश हूँ
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I found the touch in your poem....
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