मंगलवार, 5 जून 2007

मुलाकात


read my mind, originally uploaded by krupali.

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बहोत दिनों बाद
मुझसे मिलने गया
बोला आजकल
आते ही नही हो
और मैने देखा है
पहले की तरह
छोटी छोटी बातों पर
खिलखिलाते भी नहीं हो
हा यार मै बोला
वक्त ही नही मिलता
दिन कैसे गुज़र जाता है
पता ही नहीं चलता
अब भागदौड की ज़िंदगी में
जैसे खो गया हूँ
मशीनों के साथ रहते रहते
मशीन हो गया हूँ
मैं बोला मेरी मानो
दिन का एक घंटा तो
मेरे लिये निकालो
छूटती हुई ज़िंदगी से
कुछ तो पल बचालो
गप्पे लडाते साथ बैठेंगे
पुरानी यादों में
घूल कर हँस लेंगे
फिर जब जाओगे
खुशीयाँ ले जाओगे
अपनी बैटरी को तुम
रिचार्ज पाओगे
वो बात तो मेरे
दिल में उतर गई
और मैने भी मुझसे
कर दिया वादा
दिन में एक बार
जरूर मिलने जाऊंगा
भले मिले एक घंटा
या सिर्फ आधा

तुषार जोशी, नागपुर

4 टिप्‍पणियां:

  1. और मैने भी मुझसे
    कर दिया वादा
    दिन में एक बार
    जरूर मिलने जाऊंगा
    भले मिले एक घंटा
    या सिर्फ आधा..

    तुषार जी आपकी कविता का तो अब इंतज़ार रहने लगा है।

    *** राजीव रंजन प्रसाद

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  2. कर दिया वादा
    दिन में एक बार
    जरूर मिलने जाऊंगा
    भले मिले एक घंटा
    या सिर्फ आधा
    धड्कती हुई पंक्तियां हैं, तुषार जी। बहुत सुन्‍दर। जिया भी बहुत अच्‍छी लगी।

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  3. @राजीव जी, @स्वप्ना जी, @कुमार जी
    आपको अनेक धन्यवाद।

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