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हमेशा की तरह जब हम
नुक्कड पर चाट खा रहे थे
तुमने बातों बातों में
तब वो कह दिया
क्या तुम मेरी
ज़िंदगी भर के लिये
हमसफर बनोगी जिया
मै देखती ही रह गई
मेरी सारी हँसी
आश्चर्य में बह गई
कितनी आसानी से
तुमने सिधे सिधे पुछ लिया
अब मै किस तरहा
सम्हालूँ धडकता हुआ जिया
चेहरे से शरमाहट मै
रोक नही पाई
आज मेरे लिये ये शाम
क्या बन कर आई
तुमको पता नहीं पगले
ये तुमने क्या कर दिया
उस सवाल के बाद का वक्त
मैने किस तरहा से है जिया
मुझे जवाब देने को
वक्त चाहिये कहकर
मै भाग निकली
रात मैने कैसे काटी
कितनी करवटें बदली
सुबह फिर तुमको
ये कहने को फोन किया
ना कैसे कहूँ मैं
तुम्हारी ही तो हूँ जिया
तुषार जोशी, नागपुर
ईस चिठ्ठे पर लिखी कविताएँ तुषार जोशी, नागपूर ने साथ मेँ लगी तस्वीर को देखकर पहले दस मिनट में लिखीँ है। मगर फिर भी लेखक के संदर्भ, पूर्वानुभव और कल्पनाएँ उनमे उतर ही आती है। छायाचित्र सहयोग के लिये सभी छायाचित्र प्रदानकर्ताओं का दिल से धन्यवाद।
बुधवार, 6 जून 2007
जिया
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Simply Nice.
जवाब देंहटाएंखूबसूरत अभिव्यक्ति. -Dr.R Giri
जवाब देंहटाएंतुषार भाई बहुत ही रोमांटिक कविता लिखते है आप...बहुत सुंदर अभिव्यक्ती...
जवाब देंहटाएंसुनीता(शानू)
वाह! दोनों कविताएँ एक दूसरे की पूरक बन गईं । बहुत सुन्दर व सरल अभिव्यक्ति है ।
जवाब देंहटाएंघुघूती बासूती
तुषार जी..
जवाब देंहटाएंआपके लेखन के लिये यही कहूँगा - अद्वतीय।
*** राजीव रंजन प्रसाद
ना कैसे कहूँ मैं
जवाब देंहटाएंतुम्हारी ही तो हूँ जिया । :)
Tusharji, ye jiya kaun hai hamebhi batayiye
स्वप्ना जी,
जवाब देंहटाएंजिया वो प्रेयसी है जो हम सब के दिलों में रहती है।
सभी पाठकों को,
मेरा प्रणाम। आपने सराहा, और हौसला बढाया वो मुझे आगे ले जाने में सहायक होगा।
आपका
तुषार जोशी, नागपुर