(छायाचित्र सहयोगः रेखा )
.
.
आप देखते हो तो लगता है
सर्दियों की धूप जैसी
तपिश में तप रहा है मन
और आँखे झुका लेते हो
तो जैसे चाँदनी बिखर जाती है
आपको पता ना हो मगर
आपकी अदाओं से
मचती है उथल पुथल मन में
आपके खुले बाल, वो सुनहरी बिंदी
आपकी हलकी हँसी
इक लहर कि तरह आतीं है
और सुनामी बनकर बरसती हैं
दिल की बस्ती में
नींद और चैन
बहा ले जातें हो आप
और हम रह जातें है
भरते हुए आहें
और करते हुए इंतजार
दुसरी लहर का
फिरसे मिट जाने के लिये.
~ तुष्की
११ फेब्रुवारी २०१३, १०:००
सर्दियों की धूप जैसी
तपिश में तप रहा है मन
और आँखे झुका लेते हो
तो जैसे चाँदनी बिखर जाती है
आपको पता ना हो मगर
आपकी अदाओं से
मचती है उथल पुथल मन में
आपके खुले बाल, वो सुनहरी बिंदी
आपकी हलकी हँसी
इक लहर कि तरह आतीं है
और सुनामी बनकर बरसती हैं
दिल की बस्ती में
नींद और चैन
बहा ले जातें हो आप
और हम रह जातें है
भरते हुए आहें
और करते हुए इंतजार
दुसरी लहर का
फिरसे मिट जाने के लिये.
~ तुष्की
११ फेब्रुवारी २०१३, १०:००
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें