मंगलवार, 6 सितंबर 2011

मिठा झरना

(छायाचित्र सहयोग: निशिधा)
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ये स्काईप विंडो नहीं है
ये मेरा कोई सपना है
तुम परी हो पास जिसके
खुशियों का मिठा झरना है

बोलोना? कहती हो पर
देखने से फुरसत तो मिले
मेरी आँखें ये हसीन पल
जी भर के बटोर तो लें

जी भर के निहार लेने दो
ये भाग हमेशा नही खुलता है
बचाकर खर्चना पड़ता है
जो खजाना तरसाकर मिलता है

तुषार जोशी, नागपूर
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