(छायाचित्र सहयोग: पूजा )
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कहाँ से आई रोशनी ईतनी? अच्छा जी तो तुम हँस दिये
फिकी लगे चाँदनी कितनी, अच्छा जी तो तुम हँस दिये
पता नहीं था कुछ कुछ होगा कभी अपने भी दिल के साथ
हालत बिगडी क्यों अपनी? अच्छा जी तो तुम हँस दिये
अचानक क्यों सुहाना सा मौसम हो गया ईतना
है खुशबू जानी पहचानी, अच्छा जी तो तुम हँस दिये
सुना है ढुँढता फिरता है भँवरा फुलों को हुआ क्या है
फूल है शर्म से पानी, अच्छा जी तो तुम हँस दिये
तुषार जोशी, नागपूर
२६ अक्टूबर २०१०, २३:४५
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ईस चिठ्ठे पर लिखी कविताएँ तुषार जोशी, नागपूर ने साथ मेँ लगी तस्वीर को देखकर पहले दस मिनट में लिखीँ है। मगर फिर भी लेखक के संदर्भ, पूर्वानुभव और कल्पनाएँ उनमे उतर ही आती है। छायाचित्र सहयोग के लिये सभी छायाचित्र प्रदानकर्ताओं का दिल से धन्यवाद।
मंगलवार, 26 अक्टूबर 2010
लगे जैसे मिली मंझिल
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(छायाचित्र सहयोग: पूजा )
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तुम्हारी वो हँसी देखी वहीं पर खो चुके हम दिल
तुम्हारा पास यूँ होना लगे जैसे मिली मंझिल
कहा से लाये हो तुम सादगी का ये हँसी गहना
तुम्हे देखा तो दिल सोचे सलोनी तुम परी हो ना?
तुम्हारी चाँदनी से हो हमारी राह भी झिलमिल
तुम्हारा पास यूँ होना लगे जैसे मिली मंझिल
लटें जब आती है माथें पे जादू करती है कितना
शरारत से भरी आँखे कहर ये ढाती है कितना
सम्हाले कैसे खुदको हैं अभी ईतने नहीं काबिल
तुम्हारा पास यूँ होना लगे जैसे मिली मंझिल
तुषार जोशी, नागपूर
२६ अक्तुबर २०१०, २२:००
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