(छायाचित्र सहयोग: रिधिमा)
.
.
तुम्हारी याद जब भी आती है
जड़ से हिलाती है
महकाकर जाती है
तुम्हारी हँसीं की खनखनाहट
यूँ रोम रोम में अंकित होती है
जैसे याद में नहीं
सच में ही तुम फिर से आ गए हो
तुम्हारी छवी आँखों में
इस तरह डेरा डाल बैठी हैं
लगता है अभी हाथ बढाकर
सहला लूँ तुम्हारे बालों को
बस इक याद में भी
हरदम महसूस होते हो
लगता है धीरे से हाथों को
छू लिया है तुमने
मै कितनी ही देर तक
हाथों को तकता रहता हूँ
उफ तुम्हारी याद जब भी आती है
जड़ से हिलाती है
महका कर जाती है मुझको
तुषार जोशी, नागपूर
.
जड़ से हिलाती है
महकाकर जाती है
तुम्हारी हँसीं की खनखनाहट
यूँ रोम रोम में अंकित होती है
जैसे याद में नहीं
सच में ही तुम फिर से आ गए हो
तुम्हारी छवी आँखों में
इस तरह डेरा डाल बैठी हैं
लगता है अभी हाथ बढाकर
सहला लूँ तुम्हारे बालों को
बस इक याद में भी
हरदम महसूस होते हो
लगता है धीरे से हाथों को
छू लिया है तुमने
मै कितनी ही देर तक
हाथों को तकता रहता हूँ
उफ तुम्हारी याद जब भी आती है
जड़ से हिलाती है
महका कर जाती है मुझको
तुषार जोशी, नागपूर
.
.